तल्ख़ इमरोज़
और हर दिन वही
हारा मैदान
थकन और नींद के बीच
सुकू की मौज़ के थपेड़ों में
मेरे साथ
बहो जाना
ये रवानगी
ये दरिया बहते लम्हों का
ये शोर जो डूब रहा है सूरज के साथ
तुम कहाँ हो जाना के मैंने रोक रक्खी है
वो एक मौज जो आ कर रुकी है साहिल पर
एक उम्र की तल्खियत का नन्हा हासिल
इस शाम
साथ रहो
नींद के आ जाने तक
और हर दिन वही
हारा मैदान
थकन और नींद के बीच
सुकू की मौज़ के थपेड़ों में
मेरे साथ
बहो जाना
ये रवानगी
ये दरिया बहते लम्हों का
ये शोर जो डूब रहा है सूरज के साथ
तुम कहाँ हो जाना के मैंने रोक रक्खी है
वो एक मौज जो आ कर रुकी है साहिल पर
एक उम्र की तल्खियत का नन्हा हासिल
इस शाम
साथ रहो
नींद के आ जाने तक