दरवाज़े की एक फांक
से सुबह छनती हुई
पलकों पर बेचैन हरारतें करती
तेरी ज़ुल्फ़ों में गुम सी जाती है
इतना सा तिलस्म है हर रोज़ मेरे हिस्से में
जो तेरी उनींदी आँखों ने बांध रक्खा है
से सुबह छनती हुई
पलकों पर बेचैन हरारतें करती
तेरी ज़ुल्फ़ों में गुम सी जाती है
इतना सा तिलस्म है हर रोज़ मेरे हिस्से में
जो तेरी उनींदी आँखों ने बांध रक्खा है