-मुशायरा-
हिन्दुस्तानी कवितायेँ - आनंद झा
गुरुवार, 30 अगस्त 2012
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रात ले जाती है सबकुछ
एक सवेरे के सिवा
देकर धूप की बस एक कनी, एक चिंगारी आँखों में
कुछ भी बतलाती नहीं है
एक चेहरे के सिवा
सोमवार, 13 अगस्त 2012
Albert Camus ke liye
बिन्दुओं के बीच ही
बनती हैं रेखाएं
परिधि , त्रिकोण
और जैसे भी आप घूमना चाहें
इस सपाट सतह पर
जिससे भी टकराना चाहें
जिससे भी जुड़ जाना चाहें
जिधर भी रुक जाना चाहें
एक आखिर का बिंदु
जो बैठा है समय के उस तरफ
तालियाँ बजाता है
परदे गिराता है
और आपकी खींची गई
geometry दीवार पर टांग कर चला जाता है
prem aur anya mithak 2
और उसके ग़म हैं
किस्सों जैसे
ग़म के मज़े आ जाते हैं
चीखें हैं लोरी जैसी
हम सुन कर के सो जाते हैं
उसका बदन रोटी का टुकड़ा
खा कर भूख मिटाते हैं
वो होता हैं
खेला करते हैं हम उससे
फिर मोड़ कर उसे रख देते हैं किसी टोकरी में
यही तो चाहते हैं न हम
उससे जिसे हम चाहते हैं
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