रात इस बार बेकार लौट आई है 
उन सभी आवाजों से भागकर
पनाहगीर हांफती 
पहुच नहीं पाती है अपने घर
बस छटपटाती रहती है मेरे बिस्तर पर 
न खुद सोती है न मुझको सोने देती है 
चाँद झांकता रहता है खिड़की से मेरे 
घूरता रहता है रात का धुंधला चेहरा 
बस हम तीनो और पंखे की नाचती परछाई है 
एक hyphen है तन्हाई और तन्हाई के बीच