सिलसिलेवार तरीके से घट रही थी
हमारे आस पास
हम उसे जिंदगी बुलाते रहे
बच्चे स्कूल जाने से डरने लगे
अखबार टोइलेट की तरह साफ़
पड़ोस से अचानक लोग गायब होने लगे
जो आता रहा टीवी पे
बेचता रहा डर
अलग अलग शक्लों में
हर चीज़ के लिए मशक्कत
जीना मुश्किल हुआ
फिर बेमतलब
फिर आदतों का एक मुल्क बनता गया
बेमतलब बेतरकीब बेहिसाब बढ़ता हुआ
एक घाव
जिसकी टीस की लत में धुत
एक पूरा देश नीद से जगाने वालो की माँ बहन करता हुआ
सोता रहा
coma में लेटे
अपने मुल्क की उनींदी पलकों से
मक्खियाँ भगाते हुए
सिलसिलेवार तरीके से
तीस साल का हो गया
सिलसिलेवार तरीके से
तीस साल का हो गया