रुकी हुई सी रात का
अजीब कारोबार है
एक नींद का उधार था
एक नींद का उधार है
सड़क से दौड़ती हुई
बदहवास परछाइयां
ये खिड़की पे अक्स था कोई
या सपनों का गुबार है
न ढल रहा है न उग रहा
सूरज फंसा है कलेजे में
एक रात और सुबह के बीच
थका हुआ सा करार है
बुधवार, 11 अगस्त 2010
hum sabhi sadak hue
हम सभी सड़क हुए
बिछे हुए हैं पत्थरों पे
इंतज़ार में हैं
चलाओगे अपने बुलडोज़र
और जब हमारे चेहरे चिपके हुए ज़मीन पर लाल मिटटी में सने गलने लगेंगे
कब खोद डालोगे हमें हमारे पत्थरों के साथ
चीर कर हमारी माटी का सीना, निकाल कर हमारी हड्डियों से इस्पात
अपनी फैक्ट्री में डाल कर गलाओगे
हम सभी सड़क हुए
बिछे हुए हैं पत्थरों पर
इंतज़ार में हैं
कब हमारे भीतर से
बिछाओगे बारूद की चादरें
कब हमारी फसलें जलेंगी
पुश्तें गलेंगी तुम्हारी ideological भट्टीओं में
तुम गुज़र जाओगे
तुम्हारा भी वक़्त आएगा
और तुम भी गुज़र जाओगे
गुज़रती सर्दियों में
हम सड़क हैं
हम गुज़रा नहीं करते
आदिम हैं हम
मिटटी की ज़ात के
हम बदला नहीं karte
बिछे हुए हैं पत्थरों पे
इंतज़ार में हैं
चलाओगे अपने बुलडोज़र
और जब हमारे चेहरे चिपके हुए ज़मीन पर लाल मिटटी में सने गलने लगेंगे
कब खोद डालोगे हमें हमारे पत्थरों के साथ
चीर कर हमारी माटी का सीना, निकाल कर हमारी हड्डियों से इस्पात
अपनी फैक्ट्री में डाल कर गलाओगे
हम सभी सड़क हुए
बिछे हुए हैं पत्थरों पर
इंतज़ार में हैं
कब हमारे भीतर से
बिछाओगे बारूद की चादरें
कब हमारी फसलें जलेंगी
पुश्तें गलेंगी तुम्हारी ideological भट्टीओं में
तुम गुज़र जाओगे
तुम्हारा भी वक़्त आएगा
और तुम भी गुज़र जाओगे
गुज़रती सर्दियों में
हम सड़क हैं
हम गुज़रा नहीं करते
आदिम हैं हम
मिटटी की ज़ात के
हम बदला नहीं karte
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