मान लेते हैं अ के सानी ४
मान लेते हैं बी के सानी ६
जोड़ दो अलफ़ाज़ तो क्या बनता है
जनाब १० का आकडा बनता है
अलफ़ाज़ जोड़ते हैं आकडे बन जाते हैं
आजकल बहुत से ####
कलम की taxi चलाते हैं
मान लो मानी में क्या जाता है
गोया न भी मानो तो दुनिया मानेगी
आकड़ों की शैदाई है दुनिया
दिल की सियाही बेकार खाली जाएगी
सोच रहा हूँ के बेच डालूँ ये कलम
जला कर बहा दूं दरिया में ये सारे सुखन
घोट डालूँ गला इस दिल की समझदारी का
हो जाऊं शामिल फिर गधों की बस्ती में
बस एक और सामना इस भीड़ के साथ
अबकी हारा जो ये जंग तो मर जाऊंगा .
बुधवार, 31 मार्च 2010
epitaph
कटी कलाई
बहा समुन्दर
किधर का किस्सा
किधर चलेगा
लाद चला था
सारी दुनिया
रिश्ते नाते
और सन्नाटे
जहाँ चलाये उसका मौला
उधर चला था
उधर चलेगा
सब कुछ देखा
फिर कुछ जाना
की मुहब्बत किया बहाना
निचोड़ी रातों से नींद सारी
गुज़र गया एक और ज़माना
न पूछो उससे खुदा के बन्दे
हुआ है बरसों से वो दीवाना
आनी जानी दुनिया सारी
लगा रहेगा आना जाना
सफ़र तो बस दिल का तय था
उधर से ही रास्ता खुलेगा
अगले मोड़ कब्र है उसकी
उधर ठिकाना वही मिलेगा
----------२०१०--आनंद झा ------
बहा समुन्दर
किधर का किस्सा
किधर चलेगा
लाद चला था
सारी दुनिया
रिश्ते नाते
और सन्नाटे
जहाँ चलाये उसका मौला
उधर चला था
उधर चलेगा
सब कुछ देखा
फिर कुछ जाना
की मुहब्बत किया बहाना
निचोड़ी रातों से नींद सारी
गुज़र गया एक और ज़माना
न पूछो उससे खुदा के बन्दे
हुआ है बरसों से वो दीवाना
आनी जानी दुनिया सारी
लगा रहेगा आना जाना
सफ़र तो बस दिल का तय था
उधर से ही रास्ता खुलेगा
अगले मोड़ कब्र है उसकी
उधर ठिकाना वही मिलेगा
----------२०१०--आनंद झा ------
सोमवार, 22 मार्च 2010
faiz ahmed faiz ke naam
बेतकल्लुफी का हुनर तुमसे सीखे
कोई पूछे किधर की हांकोगे इस बार
किस दरीचे किस कूचे जा बैठोगे
किसकी आखों से झांकोगे इस बार
किसका हाथ थाम ऐलाने जंग छेड़ोगे
किस का तख़्त ओ ताज उछालोगे इस बार
तुम्हारी आवाज़ तरकश ऐ इंकलाबी है
किस सितमगर का ज़ोर निकालोगे इस बार
न पैदा हुआ था मैं जब तुम खुदागंज चले
एक दौर ने आफ्सान' तुम पे वारे हैं
ज़ज्बा देते हैं लिखने का और लड़ने का
ये जो सारे सुखन' तुम्हारे हैं
कोई पूछे किधर की हांकोगे इस बार
किस दरीचे किस कूचे जा बैठोगे
किसकी आखों से झांकोगे इस बार
किसका हाथ थाम ऐलाने जंग छेड़ोगे
किस का तख़्त ओ ताज उछालोगे इस बार
तुम्हारी आवाज़ तरकश ऐ इंकलाबी है
किस सितमगर का ज़ोर निकालोगे इस बार
न पैदा हुआ था मैं जब तुम खुदागंज चले
एक दौर ने आफ्सान' तुम पे वारे हैं
ज़ज्बा देते हैं लिखने का और लड़ने का
ये जो सारे सुखन' तुम्हारे हैं
paani -1
भरा समंदर
गोपीचंदर
बोल मेरी मछली कितना पानी
गल गल के आखों से बह गया
डूब के देखा इतना पानी
उबाला सूरज
धोये किस्से
रात सी काली
दिन की कहानी
चले किधर अब
किधर मिलेगा
हँसता दरिया
गाता पानी
गोपीचंदर
बोल मेरी मछली कितना पानी
गल गल के आखों से बह गया
डूब के देखा इतना पानी
उबाला सूरज
धोये किस्से
रात सी काली
दिन की कहानी
चले किधर अब
किधर मिलेगा
हँसता दरिया
गाता पानी
मंगलवार, 9 मार्च 2010
aawara muhabbaton ke naam-2
न तमन्ना-ओ-सुर सजाओ
न कोई जवाब दो
मुझे रात भर सुलाओ
मुझे एक ख्वाब दो
मुझे बोल दो के माजी
मेरा इंतज़ार है
मुझे एक रात रोको
मुझे माहताब दो
न सुकून रहा
न ज़मीन रही
कि ख्याल है या खुमार है
मुझे हर गली सजाओ मुझे हर बहाव दो
--------------आनंद झा---२००३---
न कोई जवाब दो
मुझे रात भर सुलाओ
मुझे एक ख्वाब दो
मुझे बोल दो के माजी
मेरा इंतज़ार है
मुझे एक रात रोको
मुझे माहताब दो
न सुकून रहा
न ज़मीन रही
कि ख्याल है या खुमार है
मुझे हर गली सजाओ मुझे हर बहाव दो
--------------आनंद झा---२००३---
aawara muhabbaton ke naam
रुक कर फिसलती बात पर
एक शाम का ईमान है
हथेली पे रक्खी लकीरों पे
तेरी उँगलियों के निशान है
क्या वफ़ा क्या उसके उसूल हैं
न सुना न पढ़ा मैंने कभी
पढता हूँ तेरी याद मैं
तू ही मेरी अजान है
बढ़ता हूँ हिस्सा जो तोड़कर
उससे जुड़ा सा रह गया
सीने से निकला था उस घडी
उड़ता धुआं सा रह गया
----आनंद झा----२००९---
एक शाम का ईमान है
हथेली पे रक्खी लकीरों पे
तेरी उँगलियों के निशान है
क्या वफ़ा क्या उसके उसूल हैं
न सुना न पढ़ा मैंने कभी
पढता हूँ तेरी याद मैं
तू ही मेरी अजान है
बढ़ता हूँ हिस्सा जो तोड़कर
उससे जुड़ा सा रह गया
सीने से निकला था उस घडी
उड़ता धुआं सा रह गया
----आनंद झा----२००९---
bol jamoore
खोज उसे
जो चुप बैठा है बीच तुम्हारे
जो उगता उगता गल जाता है साँझ सकारे
चल ढूंढ अठन्नी आँख की कन्नी
कूल किनारे ढूंढ
बूझ पहाडा अट्ठारह का
खोज बहारें ढूंढ
खोज उसे
कर गीली गीली पाशा
खोज मदीना ढूंढ
भरी दुपहरी सी दुनिया में
एक दिन जीना ढूंढ
आँख मिली देखा क्या तुमने
ख्वाब रहा न ख्वाब
दुनिया बनी बना ये झंझट
क्या सच क्या है ख्वाब
चलती रहे ये गाड़ी तेरी
ख्वाब कमीना ढूंढ
खोज उसे
---------आनंद झा---२००४-----
जो चुप बैठा है बीच तुम्हारे
जो उगता उगता गल जाता है साँझ सकारे
चल ढूंढ अठन्नी आँख की कन्नी
कूल किनारे ढूंढ
बूझ पहाडा अट्ठारह का
खोज बहारें ढूंढ
खोज उसे
कर गीली गीली पाशा
खोज मदीना ढूंढ
भरी दुपहरी सी दुनिया में
एक दिन जीना ढूंढ
आँख मिली देखा क्या तुमने
ख्वाब रहा न ख्वाब
दुनिया बनी बना ये झंझट
क्या सच क्या है ख्वाब
चलती रहे ये गाड़ी तेरी
ख्वाब कमीना ढूंढ
खोज उसे
---------आनंद झा---२००४-----
ahmakana sa kuch
मुझे क्या
मैं तोह रहगुज़र का हूँ
मुझे क्या
मैं तो बे उम्र सा हूँ
मुझे क्या
मैं तो ठहर जाऊं भी
ओढ़ कर एक कफ़न मर जाऊं भी
मुझे क्या, मैं तो सोता हूँ सूरज के साथ
होती है रात तो रोता हूँ सूरज के साथ
मुझे क्या मैं तो रहगुज़र का हूँ
मुझे क्या मैं तो बे उम्र सा हूँ
---------आनंद झा----२००५-----
मैं तोह रहगुज़र का हूँ
मुझे क्या
मैं तो बे उम्र सा हूँ
मुझे क्या
मैं तो ठहर जाऊं भी
ओढ़ कर एक कफ़न मर जाऊं भी
मुझे क्या, मैं तो सोता हूँ सूरज के साथ
होती है रात तो रोता हूँ सूरज के साथ
मुझे क्या मैं तो रहगुज़र का हूँ
मुझे क्या मैं तो बे उम्र सा हूँ
---------आनंद झा----२००५-----
labzishein
तुम्हारी मर्ज़ी है बात चुन लो
एक शाम कि मुलाकात चुन लो
खबर वोही है जो टूटती है
और तहों पर बैठती है
जो धूल उडती है खिडकियों पर
वही दुहरायी सी रात चुन लो
सवाल है सब सवाल क्या हैं
क्यों है जो कुछ भी दरमियाँ है
पता है तुमको मुझे पता है
कोई अटपटा जवाब चुन लो
बेमतलब के मायने हैं
जहाँ ही सारा बस यूँ बना है
देखो घूमो दौड़ लगा कर
एक ठहरी सी कायानत चुन लो
मन है खुदा खुद उसी से पूछो
उसे पता है तुम्हे नहीं है
जो है जेहन में तुम्हारा हिस्सा
वो सब यहाँ पर है, यहीं है
करो तिजारत , नमाज़ चुन लो
तुम्हारी मर्ज़ी है बात चुन लो
---------आनंद झा २००९------------
एक शाम कि मुलाकात चुन लो
खबर वोही है जो टूटती है
और तहों पर बैठती है
जो धूल उडती है खिडकियों पर
वही दुहरायी सी रात चुन लो
सवाल है सब सवाल क्या हैं
क्यों है जो कुछ भी दरमियाँ है
पता है तुमको मुझे पता है
कोई अटपटा जवाब चुन लो
बेमतलब के मायने हैं
जहाँ ही सारा बस यूँ बना है
देखो घूमो दौड़ लगा कर
एक ठहरी सी कायानत चुन लो
मन है खुदा खुद उसी से पूछो
उसे पता है तुम्हे नहीं है
जो है जेहन में तुम्हारा हिस्सा
वो सब यहाँ पर है, यहीं है
करो तिजारत , नमाज़ चुन लो
तुम्हारी मर्ज़ी है बात चुन लो
---------आनंद झा २००९------------
शुक्रवार, 5 मार्च 2010
girgit
कि जब मिले हैं सड़कों पर
मेरे चेहरे में बीते हुए कल के टुकड़े
मैं सोचता हूँ अजनबी हो जायेगा
आते हुए कल में मेरा चेहरा
हम अपने अन्दर कितने लोग रखते हैं
अपनी variable सी history के बुकमार्क
रास्ते बदलते हैं हम बदलते हैं
फिर उन्ही रास्तों पर चलते हैं
कुछ न कहना भी एक वादा है
कि जब मिलो खुद से तो बे गिला मिलना
जब भी आये कभी दिल खुद पे
तो वजह बेवजह बेपनाह मिलना
अपने आगे है , अपने पीछे है
बाँध रक्खा है तिलस्म दुनिया का
जिंदगी तुमको खुद पता भी नहीं
तुमने क्या क्या रंग बदले हैं
----------आनंद झा २००८-----------
मेरे चेहरे में बीते हुए कल के टुकड़े
मैं सोचता हूँ अजनबी हो जायेगा
आते हुए कल में मेरा चेहरा
हम अपने अन्दर कितने लोग रखते हैं
अपनी variable सी history के बुकमार्क
रास्ते बदलते हैं हम बदलते हैं
फिर उन्ही रास्तों पर चलते हैं
कुछ न कहना भी एक वादा है
कि जब मिलो खुद से तो बे गिला मिलना
जब भी आये कभी दिल खुद पे
तो वजह बेवजह बेपनाह मिलना
अपने आगे है , अपने पीछे है
बाँध रक्खा है तिलस्म दुनिया का
जिंदगी तुमको खुद पता भी नहीं
तुमने क्या क्या रंग बदले हैं
----------आनंद झा २००८-----------
yaadein
उछाला है दूर तक
यादों का गठ्हर
पत्थर ही हो गया था
लुढ़क जायेगा कहीं
अब कोई क्या करे
लेकर कहाँ फिरे
यादों के साथ क्या कहीं
जीते हैं जिंदगी
अपनी कहानी तापकर
काटी हैं सर्दियाँ
रोटी के साथ खायी हैं
यादों की चाशनी
-------------आनंद झा २००९---------
यादों का गठ्हर
पत्थर ही हो गया था
लुढ़क जायेगा कहीं
अब कोई क्या करे
लेकर कहाँ फिरे
यादों के साथ क्या कहीं
जीते हैं जिंदगी
अपनी कहानी तापकर
काटी हैं सर्दियाँ
रोटी के साथ खायी हैं
यादों की चाशनी
-------------आनंद झा २००९---------
bakaaya
मुझपर गुज़र हुई पिछली रातें
धूल की तरह जमी पिछली रातें
रजिस्टर में दर्ज कर दी हैं
कोरे कागज़ पे अनकही पिछली रातें
जो गुज़ारा है या जो गुज़रा है
जो उतारा है या जो उतरा है
खोल कर रख दिया है छतरी सा
कल भीग कर जो भी बिखरा है
मुझे यकी है मैं समेट लूँगा ये
डाल संदूक में उठाकर सर पे
निकल जाऊंगा कहीं ये सभी
मुझपर गुज़र हुई हैं जो पिछली रातें
----------------------आनंद झा २००४---------------
धूल की तरह जमी पिछली रातें
रजिस्टर में दर्ज कर दी हैं
कोरे कागज़ पे अनकही पिछली रातें
जो गुज़ारा है या जो गुज़रा है
जो उतारा है या जो उतरा है
खोल कर रख दिया है छतरी सा
कल भीग कर जो भी बिखरा है
मुझे यकी है मैं समेट लूँगा ये
डाल संदूक में उठाकर सर पे
निकल जाऊंगा कहीं ये सभी
मुझपर गुज़र हुई हैं जो पिछली रातें
----------------------आनंद झा २००४---------------
muntzir
आँचल सा फ़ैल जाता है घर
इंतज़ार में
आयेंगे वो के उनका करम है
बहार में
हर शह में एक लम्हा है
सिलवट में रात है
आता नहीं करार
दिल ऐ बेकरार में
जायेंगे वो सनद है
कुछ ही दिनों के बाद
आता है जैसे दम
और दिन उड़ते गुबार में
चौखट को हमारे भी
हो जायेगा यकीं
दिन इसने भी गिन रखे हैं
इसी ऐतबार में
इंतज़ार में
आयेंगे वो के उनका करम है
बहार में
हर शह में एक लम्हा है
सिलवट में रात है
आता नहीं करार
दिल ऐ बेकरार में
जायेंगे वो सनद है
कुछ ही दिनों के बाद
आता है जैसे दम
और दिन उड़ते गुबार में
चौखट को हमारे भी
हो जायेगा यकीं
दिन इसने भी गिन रखे हैं
इसी ऐतबार में
mukammil
बह के देखा
अपने साथ देखो
कहाँ कहाँ की मिटटी समेट कर लाया
एक दिन कूचे में नज़र बैठी
अपनी ही कहानी खरीद कर लाया
धूप में अपनी छाव में बैठा
ठंढ और गर्म की पहुच से बाहर
मैं कल ही अपने घर आया
हरा दिया मुझको मेरी ज़रूरतों ने
वाहियात मतलबों का सच पाया
---------आनंद झा -----2007
अपने साथ देखो
कहाँ कहाँ की मिटटी समेट कर लाया
एक दिन कूचे में नज़र बैठी
अपनी ही कहानी खरीद कर लाया
धूप में अपनी छाव में बैठा
ठंढ और गर्म की पहुच से बाहर
मैं कल ही अपने घर आया
हरा दिया मुझको मेरी ज़रूरतों ने
वाहियात मतलबों का सच पाया
---------आनंद झा -----2007
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