बुधवार, 5 मई 2010

रात के इस छोर से उस छोर तक लम्बी
सूखती साडी तुम्हारी
कूदती हैं मछलियाँ गाते हैं मेंढक
कल इस्तरी की मेज़ पर चला कर एक तपता लोहा
ख़त्म कर डालोगे एक रात का तिलस्म तुम

गायेगा कौन फिर सूखते हुए छत पे

1 टिप्पणी:

  1. वाह बहुत ...कम शब्द ...लेकिन गहरे भाव ,,,सुन्दर

    http://athaah.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं